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Auraq-e-jazbat by Prashant Shrivastav

Auraq-e-jazbat

पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है

अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है 


एक मोहब्बत और वो भी नाकाम मोहब्बत 

लेकिन इस से काम चलाया जा सकता है 


दिल पर पानी पीने आती हैं उम्मीदें 

इस चश्मे में ज़हर मिलाया जा सकता है 


  

Auraq-e-jazbat

अपने शहर में ऐसे बेगाने हम न थे

थे लोग बहुत जाने पहचाने कम न थे


थी रौनकें बाजार में गलियां भरी भरी

आपस में एक दूजे से अनजाने हम न थे


मिलते थे गर्मजोशी से बाहें उछाल कर

अपने भी दोस्तों में दीवाने कम न थे


होती थी चाय घरों में बेबाक गुफ्तगू

हम सबके अपने अपने अफसाने कम न थे


इंसानियत के रिश्तों में फिर से दरार है

पहले से ही दुनिया में ये खाने कम न थे 


    

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Auraq-e-jazbat

 अब किसी  #आँखकाकाजल हमें #आवाज़ ना दे..

हम हैं #ख़ामोश तो ख़ामोश ही रहने दो #हमें...


            

Auraq-e-jazbat

 बिछड़ जाऊ तो फिर, रिश्ता तेरी यादों से जोड़ूँगा

मुझे ज़िद है,मैं जीने का कोई मौका न छोड़ूँगा


मोहब्बत में तलब कैसी,वफ़ादारी की शर्ते क्या

वो मेरा हो न हो,मैं तो उसी का हो के छोड़ूँगा


ताल्लुक़ टूट जाने पर,जो मुश्किल में तुझे डाले

मैं अपनी आँख में,ऐसा कोई आंसू ना छोड़ूँगा


    

Auraq-e-jazbat

 बिछड़ जाऊ तो फिर, रिश्ता तेरी यादों से जोड़ूँगा

मुझे ज़िद है,मैं जीने का कोई मौका न छोड़ूँगा


मोहब्बत में तलब कैसी,वफ़ादारी की शर्ते क्या

वो मेरा हो न हो,मैं तो उसी का हो के छोड़ूँगा


ताल्लुक़ टूट जाने पर,जो मुश्किल में तुझे डाले

मैं अपनी आँख में,ऐसा कोई आंसू ना छोड़ूँगा


    

Auraq-e-jazbat

क़िस्मत में लिखा था सामना दर्द से होना

तू  ना मिलता तो किसी और से बिछड़े होते

Auraq-e-jazbat

मुझे इक भीड़ ने मारा है मिलकर

कोई भी अब मेरा क़ातिल नही है

Auraq-e-jazbat

किसी के हक़ में किसी के ख़िलाफ़ लिख दूँगा

मैं तो आइना हूँ जो देखूँगा साफ़ लिख दूँगा

Auraq-e-jazbat

वो शक्स मेरी हर कहानी हर किससे में आया 

जो मेरा होकर भी मेरे हिस्से में ना आया

Auraq-e-jazbat

ना जाने किस मिट्टी को मेरे वजूद की खवाईस थी

मैं उतना तो बना भी ना था जितना मिटा दिया गया हूँ

Auraq-e-jazbat

जो तुझमें -मुझमें चला आ रहा है बरसों से

कहीं ज़िंदगी उसी फ़ासले का नाम तो नहीं

Auraq-e-jazbat

उमेर की सारी थकान लाद के घर जाता हूँ

रात बिस्तर पर सोता नही मर जाता हूँ


अकसर रात भरे शहर के सन्नाटे में

इस क़दर जोर से हँसता हूँ के डर जाता हूँ


मेरे आने की खबर सिर्फ़ दीया रखता है 

मैं हवाओं की तरह आकार गुज़र जाता हूँ 


दिल तहर जाता है भूली हुई मंजिल में कहीं 

मैं किसी दूसरे रास्ते से गुज़र जाता हूँ 


सिमता रहता हूँ बहुत हल्कें अहबाब में मैं

चार दीवारी में आते ही बिख़र जाता हूँ 


मैंने अपने ख़िलाफ़ खुद गवाही दी है 

ग़र तेरे हक़ में नहीं है तो मुकर जाता हूँ

Auraq-e-jazbat

रहने तो की अब तुम भी पढ ना सकोगे मुझको

बारिश में काग़ज़ की तरह भीग चुका हूँ मैं

Auraq-e-jazbat

बिछड़ते वक्त  मेरे हर एक ऐब गिनाए उसने मुझे

सोच रहा हूँ जब मिला था उससे तब कौन सा हुनर था मुझमें

Auraq-e-jazbat

दर्द मुझको घेर लेता है रोज़ नए बहने से 

क्या वो बकिफ हो गया है मेरे हर ठिकाने से

Auraq-e-jazbat

ज़िन्दगी सुन तू यही पे रुकना,

हम हालात बदल के आते है.

Auraq-e-jazbat

तेरा हर अन्दाज़ अच्छें है 

सिवाये मूझे नज़रंदाज़ करने से

Auraq-e-jazbat

चित्रकार तूजको उस्ताद मानूँगा

ग़र दर्द भी खिंच मेरी तस्वीर के साथ

Auraq-e-jazbat

साया हूँ तो साथ ना रखने कि वज़ह क्या 

पत्थर हूँ तो रास्ते से हटा क्यूँ नहीं देते

Auraq-e-jazbat

इस अजनबी शहर में करूँगा मैं और क्या,

रूठूँगा अपने आपसे ख़ुद को मनाऊँगा ll

Auraq-e-jazbat

क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज, हाल हमारा पूँछ कर ,

हाल हमारा वही है जो तुमने बना रखा हैं...

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