बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
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ऊंची इमारतों से मकान मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
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माना कि सब कुछ पा लुँगा मैं अपनी जिन्दगी में..
मगर वो तेरे मेहँदी लगे हाथ मेरे ना हो सकेंगे..!!!!
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बड़ा अजीब सा ज़हर था उसकी यादों में,
सारी उम्र गुज़र गयी मुझे मरते मरते....
उस शक्श से फ़क़त इतना सा ताल्लुक हैं मेरा ..!
वो परेशान होता है तो मुझे नींद नही आती है..!!
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ऐसा नहीं है कि अब तेरी जुस्तजू नहीं रही..!
बस टूट-टूट कर बिखरने की हिम्मत नहीं रही..!!
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पता तो मुझे भी था कि लोग बदल जाते है..!
पर मैने तुम्हे कभी उन लोगो मे गिना नही था… !!
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ख़ाली नही रहा कभी आँखों का ये मकान..!!
सब अश्क़ बाहर गये तो उदासी ठहर गई!..!!!
दोनों ही मजबूर रहे अपने अपने दायरे में ..!
एक इश्क़ कर न सका ,एक इश्क़ भुला न सका ..!!
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इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया ए-ज़िन्दगी
चलने का न सही, सम्भलने का हुनर तो आ गया
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रेत पर ला के मछलियाँ रख दो..
प्यार का दर्द जान जाओगे…
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खामोशी की…वजह इश्क है,
वरना तुझे तमाशा हम भी बना देते
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किस मुँह से इल्ज़ाम लगाए बारिश की बौछारों पर,
हमने ख़ुद ही तस्वीर बनाई थी मिट्टी की दीवारों पर !!
ना कर जिद अपनी हद में रह ए दिल,
वो बड़े लोग हैं अपनी मर्ज़ी से याद करते है..
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हिचकियों में वफ़ा ढूँढ रहा था,,,,,,,
कमबख्त गुम हो गई दो घूँट पानी से....!!
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ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है 'फ़राज़'
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
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ना कर जिद अपनी हद में रह ए दिल,
वो बड़े लोग हैं अपनी मर्ज़ी से याद करते है..
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हिचकियों में वफ़ा ढूँढ रहा था,,,,,,,
कमबख्त गुम हो गई दो घूँट पानी से....!!
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ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है 'फ़राज़'
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
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जीत कर दिखा दूँगा तुझे दुनिया से…
हर बार मैं ही हारू, ज़रूरी है क्या…
एक दुःख पे हज़ार आंसू,
उफ़ आँखों की ये फज़ूल खर्चियाँ ,..!!
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पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो...!
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही है पिघलने दो...!!
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ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर.!
कि वो खड़ा है अभी दूसरे किनारे पर..!!
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एक दुःख पे हज़ार आंसू,
उफ़ आँखों की ये फज़ूल खर्चियाँ ,..!!
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पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो...!
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही है पिघलने दो...!!
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ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर.!
कि वो खड़ा है अभी दूसरे किनारे पर..!!
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दुआओ को भी अजीब इश्क है मुझसे…
वो कबूल तक नहीं होती मुझसे जुदा होने के डर से….
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज़ दी मुझे,
कदमों की क्या बिसात थी, साँसे ठहर गयीं।
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वो क्या समझेगा मेरी आँखों का बरसना;
जो बादल के बरसने पर बहुत खुश होता है!
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हर तन्हा रात में इंतज़ार है उस शख़्स का.. जो कभी कहा करता था तुमसे बात न करूँ तो रात भर नींद न
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज़ दी मुझे,
कदमों की क्या बिसात थी, साँसे ठहर गयीं।
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वो क्या समझेगा मेरी आँखों का बरसना;
जो बादल के बरसने पर बहुत खुश होता है!
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हर तन्हा रात में इंतज़ार है उस शख़्स का.. जो कभी कहा करता था तुमसे बात न करूँ तो रात भर नींद नहीं अाती…
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बहुत अंदर तक तबाही मचाता है वो आँसू..!
जो पलकों से बाहर नहीं आ पाता।...!!!
काश तू सुन पाता खामोश सिसकियां मेरी..!
आवाज़ करके रोना तो मुझे आज भी नहीं आता..!!
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मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ क्या है
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तेरी ज़ुबान ने कुछ कहा तो नहीं था..!
फिर ना जाने क्यों मेरी आँख नम हो गयी...!!
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तेरी तो फितरत थी सबसे मोहब्बत करने की..!
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझनेलगे…!!
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मोहब्बत का अश्कों से, कुछ तो रिश्ता जरूर है..!
तमाम उम्र न रोने वाले की भी, इश्क़ में आँख भीग गई!..!!
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ये मासूमियत का कौन सा अंदाज है "फराज़"
पर काट के कहने लगे, अब तुम आज़ाद हो
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मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ..!
वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ..!!
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काश आँसुओ के साथ यादें भी बह जाती..!
तो एक दिन तसल्ली से बैठ कर रो लेते...!!
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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त..!
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ..!
वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ..!!
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काश आँसुओ के साथ यादें भी बह जाती..!
तो एक दिन तसल्ली से बैठ कर रो लेते...!!
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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त..!
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ..!!
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तेरी ज़ुबान ने कुछ कहा तो नहीं था..!!
फिर ना जाने क्यों मेरी आँख नम हो गयी...!!
चलो उसका नही तो खुदा का अहसान लेते है..!
वो मिन्नत से ना माना तो मन्नत से मांग लेते है…!!
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हमारे दरमियाँ कुछ तो रहेगा...!
चाहे वो फ़ासला ही सही …!!
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तेरी तो फितरत थी सबसे मोहब्बत करने की…!
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझनेलगे…!!
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चलो उसका नही तो खुदा का अहसान लेते है..!
वो मिन्नत से ना माना तो मन्नत से मांग लेते है…!!
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हमारे दरमियाँ कुछ तो रहेगा...!
चाहे वो फ़ासला ही सही …!!
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तेरी तो फितरत थी सबसे मोहब्बत करने की…!
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझनेलगे…!!
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तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन…
जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा…
बहुत अजीब हैं तेरे बाद की,, ये बरसातें भी..!
हम अक्सर बन्द कमरे मैं भीग जाते हैं…!!
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तमन्नाओ की महफ़िल…..तो हर कोई सजाता है..!
पूरी उसकी होती है……जो तकदीर लेकर आता है..!!
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तेरी महफ़िल और मेरी आँखें;.!
दोनों भरी-भरी हैं!................ !!
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बहुत अजीब हैं तेरे बाद की,, ये बरसातें भी..!
हम अक्सर बन्द कमरे मैं भीग जाते हैं…!!
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तमन्नाओ की महफ़िल…..तो हर कोई सजाता है..!
पूरी उसकी होती है……जो तकदीर लेकर आता है..!!
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तेरी महफ़िल और मेरी आँखें;.!
दोनों भरी-भरी हैं!................ !!
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मेरी आँखों में छुपी उदासी को महसूस तो कर..!
हम वह हैं जो सब को हंसा कर रात भर रोते हैं..!!
अगर है गहराई तो चल डुबा दे मुझ को..!
समंदर नाकाम रहा अब तेरी आँखो की बारी है .!!
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सोचता हूँ इस दिल मे एक कब्रिस्तान बना लूँ ..!
सारे ख्वाब मर रहे हैँ एक एक करके..!!
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बस एक तुमको न जीत सके हम,..!
उम्र बीत गयी, खुद को जुआरी बनाते बनाते..!!
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बहुत भीड़ हो गई तेरे दिल में “जालिम”…!
अच्छा हुआ हम वक्त पर निकल गए….!!
पता तो मुझे भी था कि लोग बदल जाते है…!
पर मैने तुम्हे कभी उन लोगो मे गिना नही था…!!
शीशे में डूब कर पीते रहे उस ‘जाम’ को…!
कोशिशें तो बहुत की मगर, भुला न पाए एक ‘नाम’ को ...!!
ये सोच के नज़रें मिलाता ही नहीं…!
कि आँखें कहीं ज़ज्बात का इज़हार न कर दें ..।।
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वो रोई तो जरूर होगी खाली कागज़ देखकर..!
ज़िन्दगी कैसी बीत रही है पूछा था उसने ख़त में”..!!
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यूँ तो हम अपने आप में गुम थे..!
सच तो ये है की वहाँ भी तुम थे..!!
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रात सारी गुज़र जाती है इन्हीं हिसाबों में,,
उसे मोहब्बत थी…?नहीं थी…? है…?नहीं है…!!!
अगर हो इजाज़त तो तुमसे एक बात पूछ लू !
वो जो इश्क हमसे सीखा था, अब किससे करते हो..?..!!
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तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है, खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है,
फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ दर्दे दिलवालों, यहाँ दर्द-ऐ-दिल की दावा पिलाई जाती है”
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“गलत कहेते है लोग की सफेद रंग मै वफा होती है…दोस्तो…!!!!
अगर ऐसा होता तो आज “नमक” जख्मो की दवा होता…..”
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जिस जिस को भी सुनाते है हम अपना अफसाना ए उल्फत।
हर शख्स अपनी आपबीती समझ कर रोने लगता है।।
एक अज़ब सी जंग छिड़ी है, इस तन्हाई के आलम मेँ।
आँखे कहती है की सोने दे,और दिल कहता है की रोने दे॥
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मेरी बहादुरी के किस्से मशहुर थे शहर में ,
तुझे खो देने के डर ने कायर बना दिया ।
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ये नजर चुराने की आदत आज भी नही बदली उनकी …
कभी मेरे लिए जमाने से और अब जमाने के लिए हमसे…
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कीस कदर मासूम सा लहजा था उसका..
धीरे से जान कहकर बेजान कर दीया..!
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
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आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया
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आँसू हमारे गिर गए उन की निगाह से
इन मोतियों की अब कोई क़ीमत नहीं रही
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आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है
आह क़ासिद तो अब तलक न फिरा
दिल धड़कता है क्या हुआ होगा
आहटें सुन रहा हूँ यादों की
आज भी अपने इंतिज़ार में गुम
मुझे रुला कर सोना तो तेरी आदत बन गई है जिस दिन मेरी आँख ना खुली बेशक तुझे नींद से नफरत हो जायेगी
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तक़दीर का ही खेल है सब,
पर ख़्वाहिशें है की समझती ही नहीं…..
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सिमट गया मेरा प्यार भी चंद अल्फाजों में,
जब उसने कहा मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं…
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मुझे रुला कर सोना तो तेरी आदत बन गई है जिस दिन मेरी आँख ना खुली बेशक तुझे नींद से नफरत हो जायेगी
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तक़दीर का ही खेल है सब,
पर ख़्वाहिशें है की समझती ही नहीं…..
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सिमट गया मेरा प्यार भी चंद अल्फाजों में,
जब उसने कहा मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं…
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जिसको आज मुझमें हज़ारों गलतियां नज़र आती है….
कभी उसी ने कहाँ था “तुम जैसे भी हो, मेरे हों… ”
उल्टी पड़ी है कश्तीयाँ रेत पर मेरी,
कोई ले गया है दिल से समंदर निकाल कर..!
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“क्यूँ दुनिया वाले मोहब्बत को खुदा का दर्ज़ा देते हैं,
हमने आजतक नहीं सुना कि खुदा ने बेवफाई की हो”..
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मेरी ‘खामोशी’ का कोई मोल नही,
उसकी ‘ज़िद्द’ की कीमत ज्यादा है…!!
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उल्टी पड़ी है कश्तीयाँ रेत पर मेरी,
कोई ले गया है दिल से समंदर निकाल कर..!
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“क्यूँ दुनिया वाले मोहब्बत को खुदा का दर्ज़ा देते हैं,
हमने आजतक नहीं सुना कि खुदा ने बेवफाई की हो”..
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मेरी ‘खामोशी’ का कोई मोल नही,
उसकी ‘ज़िद्द’ की कीमत ज्यादा है…!!
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कुछ कहने से पहले , उसने सोचा भी नहीं ।
उसकी इस भुल ने , हाथों में जाम दे दिया।।
कर दिया कुर्बान खुद को हमने वफ़ा के नाम पर;
छोड़ गए वो हमको अकेला मजबूरियों के नाम पर।
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छोड़ दी सारी खाव्हिश जो तुझे पसंद ना थी ए दोस्त….
तेरी दोस्ती ना सही पर तेरी ख्वाहिश आज भी पूरी करते है..!!
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” काश तू मेरी आखो का आंसू बन जाए,
में रोना छोड़ दू तुझे
कर दिया कुर्बान खुद को हमने वफ़ा के नाम पर;
छोड़ गए वो हमको अकेला मजबूरियों के नाम पर।
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छोड़ दी सारी खाव्हिश जो तुझे पसंद ना थी ए दोस्त….
तेरी दोस्ती ना सही पर तेरी ख्वाहिश आज भी पूरी करते है..!!
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” काश तू मेरी आखो का आंसू बन जाए,
में रोना छोड़ दू तुझे खोने के डर से।”
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अभी मसरूफ हूँ काफी कभी फुरसत में सोचूंगा,
कि तुझको याद रखने में, मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ….
निगाहों से भी चोट लगती है
जब हमें कोई देखकर भी अनदेखा कर देतें हैं !!
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बड़ी बरकत है तेरे इश्क़ में ,जब से हुआ है,
कोई दूसरा दर्द ही नहीं होता।…..
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तेरी ख्वाहिश करली तो कौनसा गुनाह किया,
लोग तो इबादत में पूरी क़ायनातमांगतेहैं खुदा से ।.
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निगाहों से भी चोट लगती है
जब हमें कोई देखकर भी अनदेखा कर देतें हैं !!
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बड़ी बरकत है तेरे इश्क़ में ,जब से हुआ है,
कोई दूसरा दर्द ही नहीं होता।…..
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तेरी ख्वाहिश करली तो कौनसा गुनाह किया,
लोग तो इबादत में पूरी क़ायनातमांगतेहैं खुदा से ।.
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कितना नादान है ये दिल,
कैसे समझाऊँ की जिसे तू खोना नही चाहता,
वो तेरा होना नही चाहता……
मालूम है मुझे ये बहुत मुश्किल है….फिर भी हसरत है, तुम मेरी खामोशियों की वजह पूछोगे….
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हंसी आती ये सोचकर कि दर्द कोई समझता नही……
मगर उन्हीं दर्दनाक अल्फ़ाज़ो पर दाद देते है लोग।
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“जवाब” तो था मेरे पास उन के हर सवाल का…
पर खामोश रहकर मैंने उनको “लाज
मालूम है मुझे ये बहुत मुश्किल है….फिर भी हसरत है, तुम मेरी खामोशियों की वजह पूछोगे….
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हंसी आती ये सोचकर कि दर्द कोई समझता नही……
मगर उन्हीं दर्दनाक अल्फ़ाज़ो पर दाद देते है लोग।
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“जवाब” तो था मेरे पास उन के हर सवाल का…
पर खामोश रहकर मैंने उनको “लाजवाब” बना दिया…
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ना पीछे मुड़ के तुम देखो. ना आवाज़ दो मुझ को….
बड़ी मुश्किल से सीखा है …तुमको अलविदा कहना..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और..
आज कई बार.. बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
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अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना,
गर मैं बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा…
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वो परिंदा था..खुले आसमां में उड़ता था..
इश्क हुआ..सुना अब जमीं पे
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और..
आज कई बार.. बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
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अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना,
गर मैं बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा…
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वो परिंदा था..खुले आसमां में उड़ता था..
इश्क हुआ..सुना अब जमीं पे रेंगता है…
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खुद को खोने का पता नहीं चला,
किसी को पानेकी यूँ इन्तहा कर दी मैंने।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और..
आज कई बार.. बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
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कुछ ठोकरों के बाद समझदार हो गए,
अब दिल के मशवरों पर अमल नहीं करते..
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तू जीद है दिल की वरना
इन आँखों ने और भी चहरे देखे हैं.
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किसका वास्ता देकर मैं रोकता उसे,
खुदा तक तो मेरा, बन चूका था वो….
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब ..!
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे ..!!
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इक ठहरा हुआ खयाल तेरा..!
कितने लम्हों को रफ़्तार देता है....!!
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मैं हूँ, दिल है, तन्हाई है..!
तुम भी होते, अच्छा होता.. !!
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मेरे टूटने की वजह मेरे जोहरी से पूछो..,
उस की ख्वाहिश थी कि मुझे थोडा और तराशा जाये..
ज़िस्म से मेरे तडपता दिल कोई तो खींच लो;
मैं बगैर इसके भी जी लूँगा मुझे अब ये यकीन है…
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एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और..
आज कई बार.. बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
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जिंदगी जला दी हमने जैसे जलानी थी,अब धुऐं पर तमाशा कैसा
राख पर बहस कैसी…
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जब से देखा है चाँद को तन्हा.,
तुम से भी कोई शिकायत ना रही.!
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं
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कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
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ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे
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ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
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न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ
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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें
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बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
तन्हाई में भी कहते है लोग,
जरा महफ़िल में जिया करो.
पैमाना लेके बिठा देते है मैखाने में,
और कहते है जरा तुम कम पिया करो….
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तेरे चले जाने के बाद,मोहब्बत नहीं की किसी से
छोटी सी जिन्दगी में,किस किस को आजमाते…
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”इंतहा तो देखो बेवफाई कि ……..
एग्जाम मे निबंध आया बेवफाई पर…………
बस एक नाम ‘तेरा’ लिखा और हम टाँप कर गये …….”
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