
शायर बनना बहुत आसान हैं…
बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए…
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मुझ से हर बार नज़रें चुरा लेता है वो 'फ़राज़',
मैंने कागज़ पर भी बना के देखी हैं आँखें उसकी
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हाथ की लकीरें भी कितनी शातिर है.....
कमबख्त मुट्ठी में है ,लेकिन काबू में नहीं....!!!
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"हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी,
न जाने कितने सवालों की आबरू रखे।"
मुझ को ख़ुशियाँ न सही ग़म की कहानी दे दे,
जिस को मैं भूल न पाऊँ वो निशानी दे दे।
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समय कई जख्म देता है..!
इसीलिए घडी में फूल नहीं काँटे होते हैं ..!!
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एक उम्र के बाद,उस उम्र की बातें !
उम्र भर याद आती है....!!
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यूँ ना छोड़ जिंदगी की किताब को खुला,
बेवक्त की हवा ना जाने कौन सा पन्ना पलट दे।
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समंदर सारे शराब होते तो सोचो कितना बवाल होता..!
हक़ीक़त सारे ख़्वाब होते तो सोचो कितना बवाल होता...!!
किसी के दिल में क्या छुपा है ये बस ख़ुदा ही जानता है..!
दिल अगर बेनक़ाब होते तो सोचो कितना बवाल होता...!
थी ख़ामोशी हमारी फितरत में तभी तो बरसो निभा गये लोगो से.!
अगर मुँह में हमारे जवाब होते तो सोचो कितना बवाल होता...!!
हम तो अच्छे थे पर लोगो की नज़र में सदा बुरे ही रहे.!
कहीं हम सच में ख़राब होते तो सोचो कितना बवाल होता...!
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"रब" ने. नवाजा हमें. जिंदगी. देकर; और. हम. "शौहरत" मांगते रह गये..!
जिंदगी गुजार दी शौहरत. के पीछे; फिर जीने की "मौहलत" मांगते रह गये...!!
ये कफन , ये. जनाज़े, ये "कब्र" सिर्फ. बातें हैं. मेरे दोस्त,,,!
वरना मर तो इंसान तभी जाता है जब याद करने वाला कोई ना. हो...!!
ये समंदर भी. तेरी तरह. खुदगर्ज़ निकला..!
ज़िंदा. थे. तो. तैरने. न. दिया. और मर. गए तो डूबने. न. दिया ...!!
क्या. बात करे इस दुनिया. की "हर. शख्स. के अपने. अफसाने. हे..!
जो सामने. हे. उसे लोग. बुरा कहते. हे, जिसको. देखा. नहीं उसे सब "खुदा". कहते. है...!!
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जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया...
हम सीख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे..
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं...
जिन्दगी तुम हमें ढूंढो... हम तुम्हे ढूंढते हैं ...!!!
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मुश्किलें जरूर हैं, मगर ठहरा नहीं हुँ मैं,
मंजिल से जरा कह दो, अभी पहुँचा नहीं हूँ मैं।।
कदमो को बाँध न पाएगी, मुसीबत कि जंजीरे,
रास्तों से जरा कह दो, अभी भटका नहीं हूँ मैं।।
सब्र का बाँध टूटेगा, ते फ़ना कर के रख दूँगा,
दुश्मन से जरा कह दो, अभी गरजा नहीं हूँ मैं ।।
साथ चलता है, दुआओं का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो, अभी तनहाँ नहीं हूँ मैं।।
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सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है
तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है ...!!
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दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं,
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं,
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे,
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं,
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं,
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं,
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना,
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं,
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे,
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं।
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खुशियां कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,
करीब से देखा तो है रेत का घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,,
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं,
आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,,
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,,
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन,
जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,,
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात,
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं।।
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"कभी महफिलों से फुरसत मिले तो मुझे पढ़ना जरूर ,
मैं नायाब उलझनों से भरी हुई मुक्कमल किताब हूँ !!!
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मेरी हस्ती को तुम क्या पहचानोगे…??
हजारों मशहूर हो गए मुझे बदनाम करते करते
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जन्म लिया है तो सिर्फ साँसे मत लीजिये,
जीने का शौक भी रखिये..
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"कभी महफिलों से फुरसत मिले तो मुझे पढ़ना जरूर ,
मैं नायाब उलझनों से भरी हुई मुक्कमल किताब हूँ !!!
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मेरी हस्ती को तुम क्या पहचानोगे…??
हजारों मशहूर हो गए मुझे बदनाम करते करते
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जन्म लिया है तो सिर्फ साँसे मत लीजिये,
जीने का शौक भी रखिये..
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शमशान ऐसे लोगो की राख से.भरा पड़ा है
जो समझते थे.दुनिया उनके बिना चल नहीं सकती
मुझे आज फिर से महसूस हुई तेरी कमी शिद्दत से
आज फिर दिल को मनाने में बड़ी देर लगी...
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यूँ तेरी ख़ामोशी से, हमें कोई एतराज नहीं,
बस देख कर अनदेखा किया, ये खल गई
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कितना गरूर था उसे अपनी उड़ान पर,
उसको ख़बर न थी कि मेरे पर् भी आयेंगे..
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मुझे आज फिर से महसूस हुई तेरी कमी शिद्दत से
आज फिर दिल को मनाने में बड़ी देर लगी...
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यूँ तेरी ख़ामोशी से, हमें कोई एतराज नहीं,
बस देख कर अनदेखा किया, ये खल गई
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कितना गरूर था उसे अपनी उड़ान पर,
उसको ख़बर न थी कि मेरे पर् भी आयेंगे..
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किताबों से दलील दूँ या खुद को सामने रख दूँ 'फ़राज़' ,
वो मुझ से पूछ बैठी है मोहब्बत किस को कहते हैं
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लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब लो
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लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।
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साहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आज, कौन ज्यादा मजबूर है.!ये किनारा जो चल नहीं सकता, या वो लहर जो ठहर नहीं सकती.!!
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“सोचा था घर बनाकर बेठुंगा सुकून से.!
पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला..!!”
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अभी मुठ्ठी नहीं खोली है मैंने आसमां सुन ले.!
तेरा बस वक़्त आया है मेरा तो दौर आएगा…!!
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तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब .!
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे ..!!
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मेरी नेकियाँ गिनने की नौबत ही नहीं आएंगी.!
मैंने जो माँ पे लिखा है वही काफ़ी होगा..!!
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सूरज ढला तो, कद से ऊँचे हो गए साये.!
कभी पैरों से रौंदी थी, यही परछाइयां हमने..!!
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“पहुँच गए हैं, कई राज मेरे गैरों के पास,
कर लिया था मशवरा,इक रोज़ अपनों के साथ…!!”
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फिर यूँ हुआ के सब्र की ऊँगली पकड़ के हम,
इतने चले कि रास्ता भटक गए
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झुठ बोलने का रियाज करता हुँ...सुबह और शाम
सच बोलने की अदा ने...कई अजीज यार छीन लिए .!!
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सारे हवा में घोल दी है नफरतें और हवास अहल ए सियासत ने मगर न जाने क्यों पानी कुँए का आज तक मीठा निकलता है.
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ज़िंदगी ने सब कुछ ले-दे कर इक यही बात सिखायी है.!
ख़ाली जेबों में अकसर हौसले खनकते हैं..!!
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अपने मेहमान को पलकों पे बिठा लेती है..!
गरीबी जानती है घर में बिछौने कम हैं..!!
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शिकायत और दुआ में जब एक ही शक़्स हो
समझ लो इश्क़ करने की अदा आ गई तुम्हे
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जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं, अपना "गांव" छोड़ने को..!
वरना कौन अपनी गली में, जीना नहीं चाहता ।।।
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तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में,तुझे वक़्त ही नहीं दे
पा रहे हम,माफ़ करना ऐ ज़िंदगी,तुझे जी नहीं पा रहे हम..
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बहुत अजीब है ये बंदिशें मुहब्बत की 'फ़राज़'
न उसने क़ैद में रखा न हम फरार हुए
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भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई
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ज़िन्दगी पर इससे बढ़कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़',
उसका ये कहना कि तू शायर है, दीवाना नहीं।
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कई जीत बाकी हैं,
कई हार बाकी हैं
अभी तो जिंदगी का सार बाकी है..
यहां से चले हैं नयी मज़िल के लिए,
ये तो एक पन्ना था,
अभी तो पुरी किताब बाकी है..
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है...
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर...!!
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लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग
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लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।
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शिकायते तो बहुत है तुझसेऐ जिन्दगी,पर चुप इसलिये हूँ कि..जो दिया तूने,वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"!!
गलतफहमियों से भी खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते ..
!हर बार कुसूर गलतियों का भी नहीं होता ..!!
छोड़ दिया यारो किस्मत की लकीरों पर यकीन करना,
जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज़ है..!!
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कौन परेशां होता है तेरे ग़म से फ़राज़
वो अपनी ही किसी बात पे रोया होगा
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तमाम रातो की नींद फ़ना कर दी हमने,
काश की वो एक नजर उस पे ना पड़ी होती
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उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने,
और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे..!
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वो लोग भी चलते है आजकल तेवर बदलकर ..
जिन्हे हमने ही सिखाया था चलना संभल कर…..!
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दिल के रिश्तों कि नज़ाक़त वो क्या जाने 'फ़राज़'
नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती हैं चोटें अक्सर
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इश्क़ का तो पता नहीं, लेकिन,
जो उनसे है, वो किसी और से नहीं...
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क्या खूब कहा किसीने..!!!!!!
सबसे अधिक सच्चे किस्से शराबखाने ने सुने..
वो भी हाथ मे जाम लेकर..!
और सबसे अधिक झूठे किस्से अदालत ने सुने..
वो भी हाथ मे गीता और कुरान लेकर..!!
मेहनत से उठा हूँ,
मेहनत का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं ,की कद्र जानता हूँ।
लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।
छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।
मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।
कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,
क्योंकि आखिरी ठिकाना मैं अपना हश्र जानता हूँ।
हादसों के शहर में ,सबकी खबर रखिए !
कोई रखे न रखे ,आप जरूर रखिए !
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इस दौर में वफा कि बातें ,यक़ीनन सिरफिरा है कोई ,उस पर नजर रखिए !
चेहरों को पढने का हुनर ,खूब दुनिया को आता है !
राज कोई भी हो ,दिल में छुपा कर रखिए !
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नजदीकी दोस्तों की भी नहीं है इतनी अच्छी ,
रिश्ता कोई भी हो ,फासले बना कर रखिये..........!!!
तुम्हारा मिलना_इत्तेफाक नहीं है...!!
एक उम्र की तन्हाई का मेरा मुआवज़ा हो 'तुम'...!!
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अपनी जिंदगी के अंधेरों का शुक्रगुजार हूँ मैं,
जब से मुझे पता चला,तेरी रौशनी ने तुझे अंधा बना दिया
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बड़े शौक से उतरे थे हम समंदर-ए-इश्क में
एक लहर ने ऐसा डुबोया कि फिर किनारा
तुम्हारा मिलना_इत्तेफाक नहीं है...!!
एक उम्र की तन्हाई का मेरा मुआवज़ा हो 'तुम'...!!
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अपनी जिंदगी के अंधेरों का शुक्रगुजार हूँ मैं,
जब से मुझे पता चला,तेरी रौशनी ने तुझे अंधा बना दिया
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बड़े शौक से उतरे थे हम समंदर-ए-इश्क में
एक लहर ने ऐसा डुबोया कि फिर किनारा ना मिला
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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
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क़लम जब तुमको लिखती है,
दख़ल-अंदाजी फ़िर ‘मैं’ नहीं करता
चाकू, खंजर, तीर और तलवार लड़ रहे थे कि
कौन ज्यादा गहरा घाव देता है...चन्द अल्फ़ाज़ पीछे बैठे, मुस्कुरा रहा थे
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मैं नींद का शौक़ीन ज्यादा तो नही..
लेकिन तेरे ख्वाब ना देखूँ तो गुजारा नही होता
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मेरी शायरियों से मशहूर है तू इस क़दर मेरे शहर में,
दीदार किसी ने किया नह
चाकू, खंजर, तीर और तलवार लड़ रहे थे कि
कौन ज्यादा गहरा घाव देता है...चन्द अल्फ़ाज़ पीछे बैठे, मुस्कुरा रहा थे
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मैं नींद का शौक़ीन ज्यादा तो नही..
लेकिन तेरे ख्वाब ना देखूँ तो गुजारा नही होता
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मेरी शायरियों से मशहूर है तू इस क़दर मेरे शहर में,
दीदार किसी ने किया नहीं मगर ,तारीफें हर ज़ुबान पर हैं
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मुझे खैरात में मिली खुशियाँ अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने गमो में भी रहता हूँ नवाबो की तरह
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अब जो हिचकियाँ आती है तो पानी पी लेते है
ये वहम छोड़ दिया कि कोई याद करते है
डोर चरखी पतंग सब कुछ तो था मेरे पास,
मगर उसके घर की तरफ हवा ही नहीं चली
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वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गलतियों का ही नहीं होता.
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
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डोर चरखी पतंग सब कुछ तो था मेरे पास,
मगर उसके घर की तरफ हवा ही नहीं चली
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वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गलतियों का ही नहीं होता.
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
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उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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तेरे इश्क़ का रोग उतरा ही नहीं इसलिए,
हजारों हकीमों ने कर ली तौबा मुझ से
मेरी बेफ़िक्री से लोगों में गलतफहमी बेहिसाब है,
उन्हें क्या मालूम मेरा वजूद फिक्र पर लिखी गई इक किताब है
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चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते
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मिला होगा वो किसी को बिना माँगे ही,
मुझे तो इबादत से भी उसका इंतज़ार मिला
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सब को अजीज़ थे जब जद्दोजहद में थे…
कुछ पाते ही कुछ लोगों को अखरने लगे हम.
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मशहूर होने का शौक किसे है
अपने ही ठीक से पहचान लें काफी है
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पोंछ लो अपने बहते हुए आँसुओ को ऐ दोस्त..,
कौन रहना पँसद करता है टपकते हुए मकानो में
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