मुझे बेशुमार चाहत थी,बस तेरी एक हो जाने की..!
पर तूने कई बजह ढूंढ ली.एक बस मेरा न होने की..!!
Roop!.
तू आज भी बेवजह आ जाता है मेरे ख्वाबाओं मै ..!
पर यकीं मान ..!
मै आज भी आखें नहीं खोलती हं तेरे धुंधला जाने से ..!!
कह पाती हूँ की है अब भी तुझसे मोहबत , मेरे कुछ उलटे सीधे ज़ज़्बातों को ..!!
Roop!.
ये तो मैंने यु ही कह दिया ,
की हम अलग हो गए ,
क्या हकीकत मै तुम मेरा साथ हमेशा के लिए चाहते थे...?
Roop!.
हर कोई अपने दायरे मै कैदी है ,
जिसे जब थोड़ी जगह मिली ,उसने तब रुक रुक कर साँस ली ...!!
Roop!.
संगमरमर में लिखा वो तुम्हारा नाम ,
और उस पर पढ़ती बारिश की बूंदें,
बारिश- मेरे मन मैं पढ़ी सारी धुंदली परतों को धो जाती है,
और फिर से मैं तुम्हारे प्रेम में अधीर होकर बहने लगतीहूँ,
मेरा खुद को तुम्हे इस तरह पाना अच्छा लगता है,
मैं खदु से मिल पाती हूँ तुम्हे ऐसे पाकर,
पर ऐसी लगातार पढ़ती बारिश,
मुझे बहुत कुछ समझा भी जाती है,
ना समझ सी हसी, ना समझ सा उतावलापन
पर तुम नहीं समझ आते
तुम्हे प्यार करना और तुम्हारे प्यार में होना
दो अलग अलग से मोड़ है,
एक मोड़ मैंने चुना और एक मेरी सहेली सा मेरे पीछे आ गयी...
Roop!.
ता उम्र तुम मेरी कशिश बने रहना,
ता उम्र तुम मेरी कमी बने रहना ,
तुम्हें पूरा पाने की चाह नहीं,
बस तुम यूँ ही मेरी चाह बने रहना,
मैं मचलती रहु, मैं तड़पती रहु,
तुम बस मुझे ऐसे ही बेचैन करते रहना,
हर बार तुम्हें पूरा पाने की चाह में, बस तुम मुझे ऐसे ही पागल करते रहना,
ये कसक , ये नज़रों का झुकना,
सब कुछ भूल कर एक तुम्हें चूम लेना,
बस तुम ऐसे ही खुद में ये नूर संजोए रखना,
मुझे तुम्हें पूरा पाने की चाह नहीं,
बस तुम एक ऐसे ही मेरी आन बने रहना....
Roop!.
कभी कभी कहीं जात्ती सी होती है,
वजह जो भी हो,
जात्ती होती रहती है,
आप ख़ामोश रह जाते हो,
सोच कर कि बस जाने दो,
पर ये जात्ती नहीं मानती ,
ये एक कोने में थम जाती है,
गले में फाँस बन अटक जाती है,
फिर क्या ?
होता ये है कि आप ख़ामोश हो जाते हो,
पर ये जात्ती दुश्मन बन रोज़ हस्ती है आपकी खामोशी पे,
मन में कुछ और चलता है,
हर रोज़ करना कुछ और पड़ता है , फिर बस..
एक दिन ये महसूस हो जाता है,
आप बदल गए ,
कुछ बेरंग हो गए,
सबसे बुरे हो गए,
ये जो जात्ती है ना,
इसने आपको जला दिया,
आप राख थे नहीं,
बस जलते जलते ,
राख हो गये...
Roop!.........
चुप रहने से बहुत कुछ सिमट सा जाता है खुद के अंदर, खुद के अंदर का शोर सिमित नहीं होता... ये मैंने तुमको तब कहा था जब तुम २५ के थे, तुम सिर्फ मुस्कुरा दिए थे मुझे देख कर ! वो मुस्कुराहट तुम्हारी ख़ामोशी की थी ये मैं समझ गई थी पर मेरा सवाल और मैं उस शोर को ढूंढ रहे था जिसे मैं सुन्ना चाहती थी. गहराई हमे तब चुभती है जब वो शांत हो जाती है..मैंने शोर मचाके बहुत कुछ पूछा है तुमसे पर तुम अक्सर खामोश रहे ....
आज इतने सालों बाद मैंने जान लिया की शांत लहरों का वज़ूद शोर करने वालों से काफी गेहरा होता है... कुछ वक़्त और कुछ वक़्त के साथ चुप रहना आ जाता है, और तब वो २५ साल वाला साथी और उसकी गहराई बस याद आ जाती है कुछ बताने ख़ामोशी से ......
अब तुम बड़ी हो गयी हो ♥️.....
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